किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
सावधनी- इस कविता को अपने मकान मालिक के सामने नहीं पढ़े।
नही तो इस कविता से होने वाले प्रभाव के लिए सम्पत जिम्मेदार नहीं होगा
अगर आप भी कभी किराये के कमरे में रहे हो तो कमेन्ट लगाना आपका पूरा अधिकार है
अगर आपको इस रचना का मजा लेना तो दांत भिचते हुए पढ़े।
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किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
एक तो सबकुछ उसी कमरें में, बेडरुम, स्टेडी रुम, रसोई, गेस्ट रुम।
हर एक तारीख को मकान मालिक तिरछी नजर से देखने लगता है।
जैसे कि मैं दिवालिया हूँ और उसका किराया खाकर जा रहा हूँ।
साला मकान मालिक! मुझ पर षंका की दृश्टि ड़ालता है।
कहां से आ रहे हो रात दस बजे के बाद चुभता सवाल दागता है।
किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
साला मकान मालिक! खुद का तो पता नहीं।
मेरे को किस-किस का फोन आता है ,वो दिवार पर कान लगा सुनता है।
एक दिन रात भर लाईट क्या चल गई। बार-बार मुझको डाट पिलाता है।
बिजली बन्द करके सोया करो ....बिल बहुत आता है।
किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
कमरा ऐसा जिसमें ना सूरज की रोषनी आती है ना खुली हवा।
फिर भी मकान मालिकन उसको सबसे अच्छा कमरा बताती है।
पानी भरने जाता हूँ तो साबुन से हाथ धोकर मटका भराती है।
मेरी काॅलेज पास है इसलिए साल में दो बार किराया बढ़ाती है।
किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
मेरे कमरें पर कोई आने वाला हो तो उससे अनुमति लेना जरुरी है।
हर दोस्त को अपने मामा या चाचा का लड़का बताना मेरी मजबूरी है।
साफ सफाई के मामले में मुझको सबसे ज्यादा जोर आता है।
साला दो टेम का खाना टाईम पर नहीं बन पाता है।
और मकान मालिक पूछता है कमरे में कितने दिन से पोछा लगाता है?
किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
गुस्सा तो ऐसा आता है कि सिर फोड लूं अपना। जो पड़ा ऐसे मकान मालिक से पाला।
पर सहन करता हूँ मकान मालिक के सारे भूकम्प और उसकी जुबान की ज्वाला।
यही सोच कर कि एक दिन जब कहीं सेट हो जाउंगा तो
गर्व से एक बार फिर आउंगा मकान मालिक को भी बातउंगा कि, हम भी कुछ है.....सम्पत षर्मा
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किराये के कमरे में रहने का अपना दर्द है।
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