sarkari school me

Only for Sarakari Student ke liye 
सरकारी स्कूल में पढ़ने का मजा ही अलग है।
आसमानी षर्ट जिसके चार बटन,उनमें से दो टूट गये दो बाकी है।
हाफपेन्ट के हुक को पिन से सेट कर रखा है,रंग हल्का सा खाकी है।
जब स्कूल के मारसाहब कह देते है तो सात दिन में एक दिन मां धो देती है
इसी ड्रेस के साथ पढ़ता हूँ,खेलता हूँ और सो जाता हूँ।
कभी-कभी इसी ड्रेस को पहनकर,किसी के जिमने भी जाता हूँ।
ये पोशाक मेरी सरकारी पहचान है।ये पोशाक मेरी अपनी जान है।
प्राइवेट बच्चों की तरह गले पर मैं टाई -फाई नहीं लगता हूँ।
वैसे भी मेरे पास टाईम नहीं है,
घंटी लगने के बाद स्कूल जाता हूँ और घंटी लगने से पहले आ जाता हूँ।
सरकारी स्कूल में जाने का मुझे गर्व अपने आप बनता है।
क्यों कि सरकारी स्कूल में पढ़ा आदमी ही नेता बनता है।
क्लेक्टर होता है, पटवारी होता है, थानेदार बनता है।
फौज में जाता है, देष को चैन से सुलाता है।
इसलिए उसका फ्युचर ब्राइट है, जो सरकारी स्कूल में जाता है।
प्राइवेट बच्चें तो लंच ले जाते है, अपन तो भैया खुद ही घर पर आकर
ईंट के नीचे से चाबी उठाकर,घर का कठिन किवाड़ खोलकर,
चुल्हे में से बाटी निकालकर खुद है खाते है और खेलने चले जाते है।
टेंषन है ही नहीं, आठवी तक तो कोई फेल नहीं करेगा।
नवीं में थ्रड डिवीजन पास तो हो ही जाउंगा,
दसंवी में फिर सरकारी षरण में बाईग्रेस निकल जाउंगा।
फिर आगे नौकरी मिल जायेगी तो ठीक
नहीं तो वार्ड पंच, संरपच, विधायक, सांसद बनने के रास्ते तो खुले हुए है।
इसलिए अपुन टेंषन नहीं लेते है और आपको भी ये ही कहते है।
कि अगर आपने भी की है सरकारी स्कूल में पढ़ाई,
तो सरकारी स्कूल की यादें सबको बताइये।
सम्पत जी षर्मा की इस रचना पर दिल खोल कर कमेन्ट जरुर लगाइये।
- सम्पत षर्मा
http://www.sampatpoem.blogspot.in/

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