पिता खुद के लिए जिता है।

पिता खुद के लिए जिता है।
पिता खुशी देता है सबको गम खुद पीता है।
पिता पढ़ाता वो पाठ जो किताबे नहीं पढ़ाती है।
पिता के जाने के बाद पिता की खूब याद आती है।
पिता के चेहरे की लकीरे अनुभव के नियाान है
पिता का नाम हमारी पहचान है
पिता का काम हमारी पहचान है।
पिता की वाणी कठोर है
पर कोमलता दिल के चहु और हे।
पिता सोचता है रात दिन सबके बारे में
तिललियों सी लग रही है बेटिया पिता की क्यारी में
पिता न जाने कितनों से नोक झोक करता हुआ
हमको खिलाता है।
पिता अपने पसीने की कमाई से
हमारे कांटो के जीवन में फुल बिछाता है।
पिता आंखो से नहीं अन्तर मन से रोता है।

हनुमानचालीसा


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