तो आंसू निकल आते है और चुप सी हो जाती हूँ।

तो आंसू निकल आते है और चुप सी हो जाती हूँ।.............

पिता से पूछा मैंने ...बेटी के बारे मुझे कुछ बताओ जी।
कैसी होती है बेटी? आप पिता की नजर से कुछ सुनाओं जी।।

पिता बोले .... मैं इतना जानता हूँ कि ...
बेटी को डाटता हूँ तो बेटी भी रोती है और मैं भी रोता हूँ।
बेटी हँसती है तो वो चैन से सोती है और मैं भी चैन से सोता हूँ।
फिर गया मैं.... माँ के पास....माँ बोली...
बेटा सम्पत! बेटी परिवार की पतवार है..
अनुभव करके देख, बेटी बिना नहीं संसार है।
जिस घर में बेटी नहीं वो घर...घर नहीं..
उन लोगों से दूर ही रहना ‘सम्पत’
जिनके पास बेटी पालने का जिगर नहीं।

माँ ने कहा, मैं भले ही माँ कहलाती हूँ...
पर बेटी में अपना ही प्रतिबिम्ब पाती हँू।
जब-जब भी कोई पूछता मुझसे बेटी के बारे में.. 
तो आंसू निकल आते है और चुप सी हो जाती हूँ।
सुनकर माँ-बाप की बात.......मैं भी चुपचाप चला आया हूँ।
स्वीकार करना मेरे मित्रों ! मेरी इस टूटी-फूटी रचना को
मैं इससे ज्यादा बेटी पर कलम नहीं चला पाया हूँ। - सम्पत षर्मा mob- 08058924535
website http://www.sampatpoem.blogspot.in/

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