beta beti nahi ek saman

बेटा-बेटी नहीं है एक समान।बेटी है बेटे से, सदा महान्।
बेटी बाबूल को पूरा समझती है।बेटा कहां समझ पाता है?
बेटी घर के काम संग पढ़ाई करती है,बेटा कहां कर पाता है?
बेटी जो मिलें स्वीकार करती है। बेटा नकरें दिखाता है।
बेटी आये मेहमानों की सेवा करती है, बेटा दूर-दूर जाता है।
किषोरावस्था में ही बेटी सोच लेती है,
कि जाना एक दिन मुझको पड़ेगा,छोड़कर बाबूल का घर!
कुछ यादें समेट लूँ अपने पल्ले में, जब तक रहूं इधर।
फिर क्या पता? किसको पता? कब आना होगा ? बाबूल के द्वार
चैखट बदल जायेगी, बदल जायेगा मेरा संसार।
और मायके आना भी चाहूंगी ,तो ये दो पक्तियां होगी साकार!
मिलती है वो पिता से, पति से पूँछ कर ,
बेटी जब विदा होती है हकदार बदल जाते हैं !!!!
हे मेरे बाबूल! आप कैसे है...अच्छे होगें।
मैं भी खुष हूँ, आपकी यादों के साथ!
आपका सर नहीं झुकने दंूगी , चाहे ससुराल वाले ना दे साथ
अपना ख्याल मेरे पापा! जोड़ती है एक बेटी आपको हाथ!
भैया -भाभी जो कुछ खिलावें प्यार से खाना।
मेरी भाभी भी आपके घर किसी की बेटी है ये मत भूल जाना।
- और अगर समय मिले तो सम्पत षर्मा की भावयुक्त रचना
पर कमेन्ट जरुर लगाना। - सम्पत षर्मा
http://www.sampatpoem.blogspot.com/

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