मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार ,आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
मैं स्तत प्रकाष करता आ रहा हूँ। मैं सदा समय पर उजाला फैला रहा हूँ।
मैंने कभी अपने उजाले का आपको बिल नहीं भेजा।
क्या मैंने कभी आपको प्रकाष देने से मना कराया।
मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार ,आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
पता है आपको जब मैं उगता हूँ तो , मुझे राक्षक्षों से लड़ना पड़ता है।
नहीं चाहते हुए भी जलना पड़ता है। क्यों कि मुझे सबका का ध्यान रखना पड़ता है।
कब कहां से कितना पानी उठाना है,कब कहां पर कितना पानी बरसाना है
मैंने अपने आप ये सारा मेनेज्मेन्ट बिठाया
मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार, आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
मैं जब उगता हूँ तो मेरा आदि दैविक रुप होता है।
मैं जब तपता हूँ तो मेरा आदि भौतिक रुप होता है।
मुझे बहुत बुरा लगता है जब कोई मेरे आने या जाने पर सोता है।
मुझसे जल चढ़ाने के बहाने ही मिला करो दोस्तों! पर मिला करो
मुझको भगवान ने आपके लिये ही बनाया।
मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार ,आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
मुझमें भगवान से षक्ति भरी है जो मुझको नमस्कार करेगा
वो तेजस्वी होगा, अपने में अद्भुत संस्कार भरेगा।
जो निरोग रहेगा, उसका हर सपना ईष्वर साकार करेगा।
अगर आप करते हो मुझको नमस्कार तो जताता ह आपका आभार,
मैंने तो उनके लिए मेरा वर्णन सुनाया, जिन्होने बहुत दिनों से मुझको जल नहीं चढ़ाया।
कवि सम्पत की कलम पर आकर बोलता हूँ, कुछ नहीं तो कम से कम एक काम करो, इस पोस्ट को षेयर करके ही आराम करो। - सम्पत षर्मा
http://www.sampatpoem.blogspot.in/
मैं स्तत प्रकाष करता आ रहा हूँ। मैं सदा समय पर उजाला फैला रहा हूँ।
मैंने कभी अपने उजाले का आपको बिल नहीं भेजा।
क्या मैंने कभी आपको प्रकाष देने से मना कराया।
मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार ,आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
पता है आपको जब मैं उगता हूँ तो , मुझे राक्षक्षों से लड़ना पड़ता है।
नहीं चाहते हुए भी जलना पड़ता है। क्यों कि मुझे सबका का ध्यान रखना पड़ता है।
कब कहां से कितना पानी उठाना है,कब कहां पर कितना पानी बरसाना है
मैंने अपने आप ये सारा मेनेज्मेन्ट बिठाया
मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार, आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
मैं जब उगता हूँ तो मेरा आदि दैविक रुप होता है।
मैं जब तपता हूँ तो मेरा आदि भौतिक रुप होता है।
मुझे बहुत बुरा लगता है जब कोई मेरे आने या जाने पर सोता है।
मुझसे जल चढ़ाने के बहाने ही मिला करो दोस्तों! पर मिला करो
मुझको भगवान ने आपके लिये ही बनाया।
मैं सूरज हूँ मित्रों आखिरी बार ,आपने मेरे उगते रुप को जल कब चढ़ाया?
मुझमें भगवान से षक्ति भरी है जो मुझको नमस्कार करेगा
वो तेजस्वी होगा, अपने में अद्भुत संस्कार भरेगा।
जो निरोग रहेगा, उसका हर सपना ईष्वर साकार करेगा।
अगर आप करते हो मुझको नमस्कार तो जताता ह आपका आभार,
मैंने तो उनके लिए मेरा वर्णन सुनाया, जिन्होने बहुत दिनों से मुझको जल नहीं चढ़ाया।
कवि सम्पत की कलम पर आकर बोलता हूँ, कुछ नहीं तो कम से कम एक काम करो, इस पोस्ट को षेयर करके ही आराम करो। - सम्पत षर्मा
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