दर्द उठता है मगर, दर्द चुभता हैं।


दर्द उठता है मगर, दर्द चुभता हैं। 
दर्द शान्त होता है मगर दर्द चुभता हैं।
दर्द मे खुषी है फिर भी दर्द मे दर्द सारे, 
न बनना कांटा कभी, सम्पत तुम्हे पुकारे
चाहत है कि कुछ औंर लिख दूं। 

मगर, लिखने मे भी कोई दर्द है प्यारे।
दर्द दिया नही जाता। दर्द बिन जिया नही जाता ।
ये दर्द समझ मे आता है पर समझाया नही जाता ।
न समझा दर्द को, को दर्द लेकर क्या किया।
दर्द को न जाना दर्द तो ,तुने दर्द संग दंगा किया।
दर्द को छिपाकर दिल मे, मुस्कराना सीख ले।

दर्द बहुत कुछ सिखता है, दर्द औंरो का मिटाना सीख ले।
दर्द की परिभाषा नही, न ही दर्द का शब्दकोष हैं।
दर्द तो जम जाता है दिल पे जैसे बूंद ओंस हैं।
ना दर्द से दगा कर, ना दर्द दे किसी को

सम्पत जग वाले माने या ना माने ,
फिर भी दर्द होता है सभी को।
दर्द को आवाज दे, दर्द को तू साज दे। 
न दे दर्द किसी को बनाले इरादा आज से।
बनाले इरादा आज से। - सम्पत शर्मा
                                                                 - sampat sharma

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