इस कविता शीर्षक क्या रखू जी----.

इस कविता शीर्षक क्या रखू जी----.
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चुपचाप क्या जीना यारों!
खुलकर जीवन बीताना है।
दुःख किसके घर नहीं आता?
सुख का भी नहीं ठिकाना है।
‘सम्पत’ सही कहा किसी ने,
चार दिन की जिदंगी चार दिन में जाना है।
गम की बौछारों के बीच,
सतत् हमें मुस्काराना है।
टांग खीचना आदत है इसकी,
ऐसा ही ये जमाना है।
आओ चलते है साथ-साथ,
मिलकर हमें इतिहास जो बनाना है।
हार गई बुरी किस्मत मेहनत के आगे,
प्रतिकूलता ने भी लोहा माना है।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा चल पड़ो फिर से
रुको नहीं लक्ष्य बना लो पाना है जो पाना है।
मैं भी नहीं हूँ कोई बड़ा आदमी,
कलम से पेट नहीं भरेगा
मुझे भी भविष्य बनाना है।
लिखने का मकसद केवल
दिल के भाव आप तक पहूँचाना है।
आगे आपकी मर्जी.... इस रचना को लाईक करना है
या कमेन्ट लगाना.....या कमेन्ट लगाना है। ....
Mob. 08058924535


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