मृत्यु किसकी ?

My new poem.....

मृत्यु किसकी ?


मैं तो रोज मरता हूँ
मैं रोज जन्मता हूँ
मृत्यु किसकी ?
मेरे मन में कौनसा विचार कब आयेगा
मुझे नहीं मालूम 

फिर मैं जिंदा कैसा?
मेरे साथ क्या होना मुझे नहीं मालूम 
फिर मैं जिंदा कैसा?
मेरे विचार मेरे नहीं
अगर मर भी गया तो 
मृत्यु किसकी ?
अच्छे काम करुंगा तो याद कर 
लोगों की जुबां पर दो मिनिट रहूगा
बुरा किया तो भी 2 मिनिट रहूगा
मृत्यु किसकी ?

हर रोज अपने मन का नहीं होता है तो रोज मरता हू
सहारा लेकर एक नई आशा का फिर हिम्मत भरता हू 
फिर कोशिश करता हू जीने की 
लेकिन आ जाती है फिर कोई ना कोई बात ऐसी तो लगता है
अब घड़ी आ गयी है मरने की 
मृत्यु किसकी ?
मर जाउंगा तो कौन आपको बतायेगा
व्यस्त है सब अपने काम में कौन आयेगा?
मृत्यु किसकी ?

जो कहना है जो करना जिंदा हो तो कर लो 
जिसने जीते जी जीवन को नहीं समझा
‘सम्पत’ मृत्यु है उसकी
मृत्यु है उसकी
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Sampat sharma mob. 08058924535



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